kash koi sochta meri bharat ma ke bare mein bhi
काश कोई सोचता मेरी भारत माँ के बारे में भी
मरहम लगानेवाले डॉक्टर को भी कोसते हैं जो लोग
उन्हें कहाँ पता देश बनता है लोगों से
न कोई पुरानी ज़ंजीरों से ||
काश कोई सोचता मेरी भारत माँ के बारे में भी
कोटि कोटि युवा है मेरे देश में
मगर यौवन के बारे में इन्हे क्या है पता
बडे हवेली में बसे इन्हे क्या है पता ||
काश कोई सोचता मेरी भारत माँ के बारे में भी
चैनल में आकर चिल्लाते हैं जो लोग
कहाँ कहाँ से खाए हैं घूसों के ये भोग
काश कोई सोचता मेरी भारत माँ के बारे में भी ||
Labels: Hardcore Musings, poem
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